शनि ग्रह का परिचय
पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि सूर्य पुत्र हैं और यम का प्रतीक है। जीवों द्वारा पूर्व जन्म में किए गए शुभ और अशुभ कार्यों का फल प्रदान करने हेतु पर ब्रह्म परमात्मा ने नवग्रहों के माध्यम से मानव को राहत और दंड देने वाले का विधान बनाया। उन्होंने संपूर्ण जन्म में और इस जन्म में अशुभ कार्य करने वाले पापियों को दंडित करने का काम और ईश्वर की सत्ता को मानने का स्मरण कराने का कार्य शनि को सौंपा। ग्रह कुल 9 है। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि, राहू और केतू हैं। इनमें शनि सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह है। गुरु के बाद बड़े ग्रहों में शनि का प्रमुख स्थान है। मंदगति से चलने वाला यह ग्रह शनि, सूर्य की एक परिक्रमा 29 वर्ष 5 माह 16 दिन 23 घंटे और 26 मिनट में पूरी कर लेता है। शनि एक राशि पर ढाई वर्ष तक रहता है। नील वर्ण का यह ग्रह सूर्य से 1426 गुना 10 किमी दूर है और पृथ्वी से 79 करोड़ 10 लाख मील दूर । मंदगति से चलने से चलने के कारण ही शनि को शनैश्चर भी कहते हैं। ज्योतिष में शनि को पापी ग्रह माना गया है। जिस पर भी की दृष्टि पड़ जाती है। उस पर घोर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ता है और दर-दर की ठोकरें खाना पड़ती है। परंतु पूर्व जन्म में अच्छे कर्म करने वाले एवं पवित्र आचरण वाले व्यक्ति को शनि चमका भी देते हैं और उसे सभी सुख प्रदान कर देते हैं। शनि देव मानव के दुर्भाग्य को बढ़ाकर महाशूल युक्त करके उसे दुःखों के उच्च शिखर पर खड़ा करके और उसे तपाकर सही रूप में सच्चा व सही आचार व सही एवं शुद्ध विचारों वाला बनने की प्रेरणा देते हैं, इसलिए शनि महान गुरु और शिक्षक भी हैं।