मितावली - भारतीय संसद का प्रेरणा स्रोत
चौंसठ योगिनी मंदिर मितावली अपने अंदर कई रहस्यों को समेटे हुये है। दूर वीराने में 100 फुट ऊंचे पत्थर के पहाड़ पर इसकी स्थापना करने का उद्देश्य आज भी सबसे बड़ा रहस्य है। 9वीं सदी के गुप्त काल में इस क्षेत्र की • भौगोलिक स्थिति क्या रही होगी? जब इस पर विचार करते है तो इसकी स्थापना का उद्देश्य विचार मंथन के समुद्र की गहराईयों में जाने के बाद भी समझ से परे रहता है, क्योंकि उस समय वर्तमान के किसी भी नगर या अन्य किसी बसाहट का उल्लेख नहीं मिलता है। उस समय पचास-पचास मील दूर तक घना जंगल रहा होगा, क्या इतने घने जंगल में कोई राजा पूजा पाठ के लिये इस मंदिर की स्थापना करेगा? शायद नहीं। फिर इस मंदिर के निर्माण का उद्देश्य क्या रहा होगा?। यहां पर भगवान शिव के कुल चौंसठ मंदिर है जिसमें सबसे बड़ा मंदिर बीच में स्थित है। मंदिर की त्रिज्या 170 फुट है। बड़ा मंदिर केन्द्र में स्थापित है। मितावली अपने अंदर कई ऐसे गूढ़ रहस्यों को समेटे है जिनसे पर्दाफाश होना आज भी शेष है। कई रहस्य तो ऐसे भी जो दुनिया के किसी अन्य प्राचीन स्मारक में देखने को नहीं मिलेंगे। जिसमें से यहां पर कबूतरों व चमगादड़ों का बसेरा न हो पाना भी एक है। दूसरा इस मंदिर के शिवलिंगों की बनावट, जिनमें जलहरी नहीं पाई जाती है। हिंदू धर्म के ग्रंथ शिवपुराण के मुताविक जिस शिवलिंग में जलहरी (भगवान शिव की पिंडी में नीचे की तरफ लगी गोलाकार आकृति जिस पर पिंडी के ऊपर चढ़ाया गया पानी गिरता है तथा शेषनाग कुंडली मारकर बैठता है, वह शिवलिंग भगवान शिव व आदिशक्ति मां पार्वति का रूप होता है, लेकिन जिस शिवलिंग में जलहरी नहीं होती है वह सिर्फ भगवान शिव का प्रतिरूप होता है। एक खास बात और सभी छोटे मंदिरों का आकार फीते से नापकर बिल्कुल एक बराबर है, लेकिन सभी मंदिरों में शिवलिंगों का आकार अलग-अलग है।