जानते हैं शनिदेव के जीवन से जुड़ा यह रहस्य

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जातक की कुंडली के एकादश भाव के शनि द्वारा समत्ति, ऐश्वर्य, मांगलिक, कार्य, वाहन, रत्न की प्राप्ति होने से एकादश भाव को प्राप्ति स्थान की संज्ञा दी गई है। पौराणिक कथा अनुसार लंका पति रावण ने समस्त ग्रहों को एकादश भाव में बंद कर दिया था, जिससे ग्रहों की चाल रूक गई थी और रावण बहुत शक्तिशाली एवं यशस्वी हो गया था।

एकादश भाव का शनि व्यक्ति को धन, वैभव, सर्व-सम्पदा प्रदान कर यशस्वी बनाता है। जब रावण के यहां पुत्र मेघनाद का जन्म हुआ था, उस समय शनि भी सभी ग्रहों के साथ रावण के यहां एकादश भाव में बंदी थे. किन्तु उन्होंने अपना एक पैर बाहर निकालकर द्वादश भाव में रख दिया था। मेघनाद के जन्म के समय एकादश भाव में बंद शनि के प्रभाव से ही मेघनाद इन्द्रजीत कहलाया था ।

द्वादश भाव का शनि- द्वादश भाव जातक वाला शनि अति व्यय आदि से दुखी रहता है। वह प्रमाद से ग्रस्त निंदित कृत्यों में अभिरूचि, अस्थिर चित्तवृति, अप्रिय वेषभूषा से युक्त घोर स्वार्थी होता है।

शनि के द्वादश भाव में पैर रखने के कारण मेघनाद की जन्म कुंडली कमजोर हुई और उसकी मृत्यु संभव हो सकी थी। इस कारण रावण ने क्रोध से श्री शनिदेव के पैर पर प्रहार कर शनिदेव को चोट पहुंचाई, जिसके कारण उनकी गतिमंद हो गई ।