बटेश्वर - शिवमंदिरों की श्रंखला

मितावली के चौंसठ योगिनी शिवमंदिर के माफिक ही अति प्राचीन शिवमंदिरों की श्रंखला को समेटे बटेसुरा आज भी पुरातत्व वेत्ताओं के लिये एक पहेली बना हुआ है। 6वीं सदी में एक ही स्थान पर भगवान शिव के साढ़े तीन सौं मंदिरों की स्थापना के पीछे मंशा क्या रही होगी। इतिहासकार इन मंदिरों का निर्माण मितावली के चौंसठ योगिनी मंदिर से जोडकर चल रहे है। अगर मितावली योगियों व तांत्रिकों का विश्वविद्यालय रहा होगा तो बटेसुरा गुरूकुल । बटेसुरा के शिवमंदिरों में से अधिकांश मंदिरों में स्थापित शिवलिंग मितावली के समान ही ही है तथा नक्कासी भी काफी हद तक मिलती है। बटेसुरा के मंदिरों की खोज भी महान पुरातत्ववेत्ता कनिंघम ने की थी। सन् 1940 तक पुरातत्व विभाग को बटेसुरा की जानकारी नहीं थी। महान कनिंघम की भारतीय पुरासंपदा की किताब में इसका जिक्र मिलता है।

16वीं सदी से लेकर 10वीं सदी तक के प्रतिहार कालीन शिवमंदिरों की यह श्रंखला बटेसुरा जिसे चंबल का शिवधाम का नाम दिया गया है, कालातंर से जमीन में सांस ले रहा था। सतह पर मौजूद मंदिर के अवशेष अपनी प्राचीनता व आस्था की कहानी स्वयं कहते हुये प्रतीत हो रहे है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग विभाग द्वारा मंदिरों के पुननिर्माण का कार्य करीबन छह वर्ष पूर्व शुरू किया था लगभग साढ़े तीन सौ मंदिरों में से सौ मंदिरों को मूल स्वरूप प्रदान किया जा चुका है। प्रतिहार कालीन इन मंदिरों की उत्कृष्ठ नक्कासी देखते ही बनती है।