महाभारत की कुंती का कुंतलपुर
जितना धनुर्धर अर्जुन को महाभारत में सम्मान मिला, कहते हैं उतना ही कर्ण भी अपने दानवीर स्वभाव के चलते काफी प्रचलित था। हालांकि उसके जीवन की बात करें तो उसका पूरा जीवन चनौतियाों से भरा हुआ था। कहा जाता है महाभारत युद्ध में एकमात्र कर्ण ही ऐसा योद्धा था जिसने अर्जुन को टक्कर दी थी। इनके जन्म से जुड़ी ये जानकारी तो सब जानते हैं कि इनके जन्म के बाद ही इनकी माता ने इन्हें त्याग दिया था। मगर इस बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं कि इनका जन्म कहां हुआ था। तो अगर आप भी नहीं जानते कि दानवीर कर्ण का जन्म कहां हुआ है तो बता दें आज आपके पास मौका है क्योंकि हम आपको बताने वाले हैं कि कहां माता कुंती को सूर्यपुत्र से वरदान प्राप्त हुआ था और कहां पैदा हुए कर्ण।
दरअसल धार्मिक कथाओं के अनुसार मध्यप्रदेश के चंबल क्षेत्र के मुरैना जिले में स्थित कुंतलपुर नामक स्थल में कर्ण का जन्म हुआ था, जिसे आज के समय में कुतवार नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है यहां पांडवों की माता कुंती का मायका भी था यानि ये पांडवों का ननिहाल भी था। कथाओं की मानें तो एक दिन कुंती ने अश्वगंधा नदी, जिसे वर्तमान समय में आसन नदी के नाम से जाना जाता है, के किनारे स्नान करते समय ऋषि के वरदान की परीक्षा लेने के लिए भगवान सूर्य की उपासना की। जिसके परिणाम स्वरूप सूर्य भगवान अपने रथ के साथ नदी के किनारे प्रकट हो गए। ऐसा कहा जाता है सूर्य देव के घोड़ों के पैरों के निशान आज भी यहां देखने को मिलते हैं।
ऋषि के वरदान के अनुसार भगवान सूर्य ने कुंती को संतान होने का आशीर्वाद दे दिया। जिसके बाद कुंती सूर्यदेव से क्षमा याचना करने लगी और उन्हें कहने लगी कि मैं तो अभी कुंआरी हूं, मैंने केवल ऋषि के वरदान की परीक्षा लेने के लिए ये सब किया। ये सुनने के बाद सूर्यदेव ने कुंती का कुंआरापन छिर्ण न हो, उसके कान से बालक का जन्म किया। यह बालक सूर्यदेव के सामान तेज वाला कुंडल कवच पहने था।
मगर सामाजिक लोक लाज की वजह से कुंती ने इस बालक को अपनाया नहीं और एक छोटी से टोकरी में रखकर उसे आसन नदी में बहा दिया। बता दें यही आगे चलकर यही बालक दानवीर राजा कर्ण के नाम से जाने गए। आसन नदी को करणखार के नाम से भी जाना जाता है ।
3000 साल पहले के इतिहास पर गौर फरमायें तो नाग राजाओं की तीन स्थानों पर राजधानियां होने के साक्ष्य मिलते है। मथुरा, कुतलपुर मुरैना तथा पदम पवाया ग्वालियर। इन तीनों स्थानों पर पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान नागवंश काल के चीनी मिट्टी के बर्तन तथा सिक्के मिलते है। नागवंश के बाद इस क्षेत्र में गुप्ता साम्राज्य आया, इसके साक्ष्य भी खुदाई में मिल चुके है। कुतवार कछवाह राजाओं की राजधानी रह चुका है। पुरातत्व में रूचि रखने वाले तथा भारत के प्राचीन इतिहास पर शोधकर्ताओं के लिये कुतवार एक एक्स लोरेवल साइड रही है। महाभारत के युग में नाग राजाओं के चीनी मिट्टी के बर्तन व सिक्के ग्वालियर पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुये है। कुतवार की जमीन में से मिलने वाले सिक्के तीन प्रकार के है। समुद्रगुप्त, गनपतनागा तथा नागसेना वंश। गनपतनागा व नागसेना की समुद्रगुप्त से दुश्मनी थी। गनपतनागा व नागसेना आपस में गहरे दोस्त थे। पांडवों की मां कुंती का जन्म मथुरानरेश के यहां हुआ था जो यादववंशी थे। कुंतलपुर के राजा कुंतीभोज जो नागवंशी थे, ने कुंती को गोद लिया था । कुतवार की जमीन में से नागवंशी व गनपतनागा कालीन सिक्कों का मिलना तो समझ में आता है लेकिन समुद्रगुप्त कालीन सिक्के मिलना अचरच में डालता है, क्योंकि दोनों राज्य के व्यापारी भी सौदागरी करने के लिये एक दूसरे के राज्यों में नहीं जाते थे, फिर कुतवार की जमीन में समुद्रगुप्त काल के सिक्कों का मिलना, यह साफतौर पर दर्शाता है कि कहीं न कहीं हमसे इतिहास की कोई कड़ी छूट रही है। जिस पर और शोध की आवश्यकता है।