चंबल सफ़ारी

चम्बल नदी की अथाह गहराई में हजारों वर्ष बाद आज भी सैकड़ों रहस्य छुपे हुये है। चाहें हम इसके इतिहास की बात करें या वर्तमान परिवेश की, या फिर चंबल की गहराई की अथवा इसके अंदर पलने वाले हजारों किस्म के जलचरों व थलचरों की, मिश्र के पिरामिड की तरह हमेशा से ही अबूझ रहे है। प्राचीन काल में चंबल नदी को चरमन्यवती नदी के नाम से जाना जाता था तथा इसका जिक्र महाकाव्य महाभारत में भी मिलता है। महाभारत में चंबल क्षेत्र शकुनी के राज्य का हिस्सा हुआ करती थी। यह चंबल के पानी की ही तासीर थी कि शकुनी ने अपने भांजे दुर्योधन के लिये पांसों का खेल खेलते हुये अपनी वफादारी इस प्रकार पेश की, कि भगवान श्री कृष्ण भी पांडवों को हार से नहीं बचा सके थे। चंबल नदी को प्राचीन काल में चरमन्यवती के नाम से जानते थे । चरमन्यवती का अर्थ होता है ऐसी नदी जिसके किनारे चमड़े के माफिक सूखे हो । महाकाव्य महाभारत में बताया है कि चरमावती नदी का उदगम आर्यन राजा रांतीदेव द्वारा हजारे गायों के बलिदान से निकली खून की धारा से हुआ, इसी प्रकार हजारों की संख्या में इसी वंश के अग्रिहोत्री राजा ने अपनी रसोई में बलिदान दिया था, तभी से इसका नाम चरमन्यवती नदी पड़ गया। चंबल नदी का इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है। आज यह चंबल नदी देश ही नहीं समूचे विश्व की इकलौती शुद्ध नदी है, जिसमें विलुप्तप्राय जलीय जीव घडियाल, डाल्फिन, मगर, कछुआ आदि का संरक्षण किया जा रहा है। यहां हर साल दीपावली के बाद शीत ऋतु में विभिन्न प्रकार के हजारों विदेशी पक्षी आते है जो होली खेलने के बाद चले जाते है। चंबल नदी का उदगम विंध्यान पर्वत श्रंखलाओं में से सिंगार चोरी नामक एक चोटी से उत्तरी पठार में से हुआ है और 960 किलोमीटर का लंबा सफर तय करने के बाद इटावा उत्तर प्रदेश में यमुना नदी में विलीन हो जाती है। चंबल नदी देश ही नहीं विश्व की ऐसी इकलौती नदी है जिसमें गंगा नदी में पाये जानी विलुप्तप्राय डाल्फिन, घडियाल, मगर व कछुओं की अनेक प्रजातियाँ पल रही है। विश्व में पाये जाने विलुप्तप्राय घडियालों में से नब्बे फीसदी घडियाल अब सिर्फ चंबल नदी में ही पाये जाते है।