ककनमठ - विचित्र शिव मंदिर
11 वीं सदी में कछवाह सम्राज्य के अंतिम शासक कीर्तीराज द्वारा निर्मित सिहोंनिया का ककनमठ शिवमंदिर मलेच्छों के अनेक हमले झेलने के बाद आज भी सीना तानकर खड़ा है। आमधारणा है कि राजा कीर्तीराज ने अपनी रानी ककनावती की इच्छा को पूरा करने के लिये खजुराहो शैली में इस स्थाकार मंदिर का निर्माण कराया था। ग्वालियर किले पर मौजूद सबसे पुरानी और सबसे मूल्वान कृति सहस्त्रबाहू के मंदिर में एक जगह लिखा मिलेगा अदभुत सिंहपानीय नगरे येन कारितरू कीर्ति स्तंभ प्रसाद पार्वतीपते। ककनमठ अपनी सिंहपानीय या सिंहौनियां को बड़ा अदभुत नगर बताया गया है।
भव्यता व स्थापत्य कला के चलते शुरू से ही दूसरे राजाओं की आंखों की किरकिरी रहा। ककनमठ को विदेशी हमलावरों को दो-दो बार तुड़वाया- उधड़वाया, लेकिन आज भी यह नागर शैली का रथाकार मंदिर प्राचीन भारत के शिल्पियों का यशोगान कर रहा है। मंदिर को बने सौ सवा सौ साल ही हुये थे कि सुल्तान अल्तमश न इसकी ऊपरी सजावट को उड़वा डाला, फिर भी यह मंदिर म्लेच्छों की आंख में चुभता रहा। इन्हीं म्लेच्छों के बारे में उस समय राजा डूंगरेन्द्र सिंह तोमर ने अपनी राजसभा के कवि विष्णुदत्त पूछा- म्लेच्छ वंश बढ़ रहयो अपारा। कैसे रहे धरम की धारा । म्लेच्छ हमलावर सिकंदर लोधी ने लगभग ने ढाई सौ साल बाद ककनमठ पर तोप से गोले दगवाए। मंदिर का कलश टूटकर नीचे आ गिरा, फिर भी मंदिर बिल्कुल धूल मेंनहीं मिलाया जा सका। खंडित मानकर पूजा अर्चना जरूर बंद कर दी गई। यह गनीमत रही कि सिंकदर लोदी के कुछ समय बाद जब मुगलों ने धावा बोला तो वे ग्वालियर से ही वापस लौट गये। ककनमठ तक नहीं आये। बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में इस बात का जिक्र किया है कि ग्वालियर किले की तलहटी में बनी विशालकाय जैन मूर्तियों को उसने हुक्म देकर तुड़वाया। जनरल कनिंघम सन् 1860 में पुरातत्व विभाग के सर्वेसर्वा बने। एतिहासिक स्थलों की खोज में वे पच्चीस साल तक लगातार देशाटन करते रहे। भारत का चप्पा-चप्पा छाना। कनिंघम सिहोंनियां का ककनमठ भी देख गये। उन्होंने कुछ प्राचीन अभिलेख देखे थे, वे अब नहीं मिल रहे है। मुरैना व ग्वालियर में जितने भी अच्छे म्युजियम है, सबसे ज्यादा नुमाइश सिहौनियां की मूर्तियों की ही है। गूजरी महल के सिंह द्वार पर रखे दो विशालकाय पत्थर के शेर सिंहपानीय नगर के नाम को सार्थक कर रहे है। सिहौनियां के ककनमठ से ही ग्वालियर लाये गये थे। लगभग आठ सौ साल पहले भारत आये इतिहासकार अलवरूनी ने भी शाहनामा में ककनमठ का जिक्र किया है। अब तो 115 फिट ऊंचा यह मंदिर पूरा दिखाई देता है।