शनि मंदिर परिसर में हनुमान जी की प्रतिमा
त्रेतायुग में श्रीलंका से प्रक्षेपित उल्कापिंड | के रूप में भगवान शनिदेव मुरैना के ऐंती गांव के जंगल में पर्वत पर आये और यह पर्वत उल्कापिंड वेग के कारण लगभग 100 से 150 फुट नीचे गया। मान्यता के अनुसार राजा विक्रमादित्य द्वारा ऐंती पर्वत के इस मंदिर का निर्माण तथा भगवान शनिदेव की प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा कराई गई थी।। भगवान शनिदेव की प्रतिमा पूर्व मुखी होने के कारण पिता सूर्यदेव से सीधा सामना होने से अनिष्ठ की संभावना को दृष्टिगत रखते हुये अलोकिक, अति सुन्दर हनुमान जी की बालकाल रूपी स्वर्ण आभूषणों । से सुसज्जित दक्षिण मुखी प्रतिमा की स्थापना भी कराई गई। पुत्र शनिदेव और पिता सूर्यदेव के मध्य हनुमान जी की यह प्रतिमा श्रद्धालुओं को हर पल, हर क्षण आकर्षित करती है। प्रतिमा में हनुमान जी बांये हाथ पर पर्वत उठाये हुये हैं, दाये हाथ में गदा को प्रहार करने की स्थिति में लिये हुये है। बांये पैर से एक राक्षस को दबाने का कार्य कर रहे हैं। इस प्रतिमा का सिर से लेकर पैरों तक सम्पूर्ण श्रृंगार किया हुआ है।