शनि पर्वत से निकली गुप्त गंगा

ऐंती के पर्वत पर प्रक्षेपित भगवान शनिदेव अपनी खोई हुई ताकत को पुनः प्राप्त करने के लिये तप-साधना करना चाहते थे, लेकिन पीने के पानी और भोजन की समस्या इस जंगल में विकराल रूप में दिखाई दे रही थी। यह किवदंती एवं मान्यता है कि भगवान शनिदेव ने पुनः हनुमान जी से अनुरोध किया कि भोजन, पानी की व्यवस्था इस जंगल में की जाये, तब हनुमान जी ने भगवान शनिदेव की स्थापित स्थान पर ही पहाड़ के शीर्ष पर पानी का स्त्रोत उत्पन्न किया। यह गुप्त गंगा के रूप में विख्यात हुआ। आज भी गुप्त गंगा से निरंतर जल प्रवाहित हो रहा है। इस जल की मुख्य विशेषताऐं हैं कि कुष्ट रोग के साथ कुछ अन्य रोग भी इसमें निरंतर स्नान करने से मिट जाते हैं। हनुमान जी ने इस पर्वत के चहुंओर 84 झरने निर्मित किये। पौढ़ी हनुमान जी के नीचे हनुमानधारा निरंतर प्रवाहित होती रहती है।